August 26, 2014

आमिर का 'ट्रांजिस्टर '

- सुरजीत सिंह
सर्पाकार सी लेटी हुई रेल पटरी है। नॉस्टेल्जिया सा ट्रांजिस्टर है। थोड़े पुराने, ज्यादा नए आमिर हैं। सद्यजात खान है। आधुनिक संस्कार सी देह है। कुल लब्बोलुआब यह कि पटरियों के बीचोंबीच आमिर खान नग्न खड़े हैं, सपाट, भाव शून्य, वस्त्रहीन! हाय! सारी शर्म-हया छोड़...तौबा, तौबा!! वे इंडिया की नजर में न्यूड हैं और भारत की दृष्टि में नंग-धड़ंग। वर्तमान के मुहाने पर खड़े बेशर्म भविष्य की तरह। बदन पर लज्जा वसन नहीं है। सो, लाज किसी तरह ट्रांजिस्टर से ढांपे हैं। कसी हुई नग्न देह बाजार की प्रत्यंचा पर चढ़ी हुई है और ट्रांजिस्टर जैसे लगभग शेष रह गए सांस्कृतिक अवशेष की तरह है, जो आधुनिकता की आंधी से अंतिम मुकाबला लड़ रहा है।
यह वह आत्मलीन दौर है, जिसमें अनावृत्ति, निवृत्ति, मुक्ति ही परफेक्शन की निशानी है। जिसको बाजार की सुनामी ने उघाड़ दिया, उसे दुनिया भर के मॉडर्न और अपार रेंज वाले वस्त्र भी क्या ढांपने की कूव्वत रखते होंगे? उलटबांसियों के इस युग में जो सघोष जितना वस्त्राच्छादित, उतना ही अनावृत्त! जी हां, यहां माल बिकता है! आमिर भी कुछ बेचने निकले हैं। वे स्वयं माल की तरह प्रस्तुत हैं। तसल्लीबख्श यह है कि आमिर के हाथ में ट्रांजिस्टर है। अगर हाथ में लोटा होता, तो वे सब पटरी वाले हाहाकारी चिंता में पड़े होते, जिनका सुबह-सुबह रेल की पटरियों पर लोटा चिंतन का जन्मसिद्ध अधिकार है। आमिर के ट्रांजिस्टर ने उन्हें दुविधा मुक्त कर दिया है। लेकिन आमिर की तरह ही अनुत्तरित सवाल यह खड़ा है कि आमिर यूं क्यूं खड़े हैं? उनकी दशा, दिशा क्या है? कहा जा रहा है आमिर 'पीके '  नग्न खड़े हैं। पिया हुआ बहकने को थोड़ा स्वतंत्र होता है। जबकि यहां तो अनपिये लोग, पूरे होशोहवाश वाले 'बहके ' हुए हैं, फु ल नंगई मचाने पर तुले हैं।
भरे बाजार नीलामी हेतु प्रस्तुत हैं:- कोई उनके सारे वस्त्र ले जाए। सारी लाज ले जाए। बचा-खुचा चरित्र ले जाए। ईमान ले जाए। संस्कार ले जाए। नैतिकता ले जाए। कायदों से शर्म-लिहाज ले जाए। पहचान ले जाए। पुरखों की कमाई इज्जत-आबरू ले जाए। बदले में ढेर सारी बदनामी दे जाए। बेईमानी दे जाए। अहा, वह ऊंचाइयां दे जाए, जो रातों-रात चमकता कंदील बना दे, कंगूरा बना दे, सेलिब्रिटी स्टेटस दे दें।
उचककर गौर से देखें तो आमिर के पीछे विराट भारत खड़ा है। नंग धड़ंग। पूर्णत: अनावृत्त। स्वत्व से निवृत्त। मूल से रहित। लालच की पटरी पर सवार। नेता चरित्र से। नई पीढ़ी संस्कारों से। परिवार परम्परा से। समाज मूल्यों से। राष्ट्र जड़ों से। राज नीति से। अफसर ईमान से। बाबू काम से। बाबा संतई से। हीरोइन वस्त्रों से। एक्टर एक्टिंग से। फिल्में कहानी से। साहित्य उद्देश्य से। कार्य कारण से। नदियां किनारों से। सागर तट से। मौसम मियाद से। हवाएं दिशा से। माटी महक से। एनआरआई वतन से। पुरुष पौरुष से। औरत हया से। युवा युवकोचित कर्म से। पढ़ाई सिद्धांत से। गुरु पढ़ाई से। शिक्षण गांभीर्य से। विश्वविद्यालय शोध से। प्रोफेसर अध्यापन से। खिलाड़ी खेल भावना से। सरकार दायित्वों से। संसद मर्यादा से। पुलिस संवेदना से। कानून पालना से। आंखें पानी से। शरीर आत्मा से। अंतस जमीर से। इच्छाएं संयम से। आदतें व्यवहार से। भाव पहुंच से। वस्तुएं क्रय शक्ति से। गरीब जिंदगी से। परवरिश पोषण से। उफ्, बड़ी लंबी फेहरिस्त है।

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- सुरजीत सिंह,
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