June 02, 2008
कल रात आपने क्या देखा?
मैं रात्रि में अस्पताल में भर्ती एक रिश्तेदार के पास था। लेकिन मैच का ताजा स्कोर जानने की प्रबल उत्कंठा का शिकार था। मेरा बीमार रिश्तेदार ब्रेन हैमरेज के बावजूद एक लम्बी चैन की नींद में था, लेकिन मैं? मेरी दिमागी नसों में दौड़ते लहू को महसूस कर सकता था। दो नीरस और इकतरफा सेमीफाइनल के बाद रोमांच से भरे फाइनल की उम्मीद कम थी। उम्मीद थी तो सिर्फ इसलिए कि शेन वार्न अपनी फिरकी के इस्तेमाल के साथ-साथ दिमागी गुगली से भी विपक्षी टीम को मात देने की कोशिश करेंगे। वहीं, महेन्द्रसिंह धोनी भी मैदान पर रणनीति और जोश के समिश्रण से राजस्थान रॉयल्स को आसानी से ताज नहीं पहनने देंगे। हुआ भी वही। बार-बार फोन कर एक मित्र से बराबर जानकारी ले रहा था। आखिरी ओवर्स में तो मोबाइल चालू रखा और उससे बॉल दर बॉल हाल सुनता रहा। अन्तिम ओवर में मैंने जो बेचैनी महसूस की, कल रात आम क्रिकेट प्रेमी भी उससे बच नहीं पाया होगा। मैंने महसूस किया, मेरी धड़कनें तेज हो रही हैं। दिमाग में उथल-पुथल मची है। मैं इसे नजरअंदाज करने की भरपूर चेष्टा कर रहा था। अस्पताल की उस सख्त बेंच पर करवटें बदलते देख कोई भी मेरी बेचैनी की हालत को साफ-साफ पढ़ सकता था। ऐसा हुआ भी। पास के एक-दो लोगों ने मेरे चेहरे के उतार-चढ़ावों को नोट किया और उत्सुकता से देखा। मैं क्रिकेट को जुनूनी अंदाज में नहीं लेता। इसलिए मैं खुद मेरी हालत पर चौंक रहा था। लेकिन पैंतालीस दिन के आईपीएल तमाशे के बाद फाइनल मैच तक आते-आते जो स्थित बन रही थी, क्या वह ट्वंटी-२० क्रिकेट की बेतहाशा लोकप्रियता का नमूना नहीं था? तमाम आशंकाओं के बावजूद कल रात हर बॉल के साथ यह नौटंकी हिट हो रही थी। शुरू में इस क्रिकेट में भावनाओं को खारिज कर देने वाले लोग स्वयं भावनाओं पर काबू नहीं रख पाए होंगे। शोहेल तनवीर को पिटता देखने के आकांक्षी रहे लोग, वे याचक की मुद्रा में उससे दो रनों की कामना कर रहे थे। यह क्रिकेट में नया ऐरा की धमाकेदार दस्तक है। क्या आपने सुनी? किसी चीज के परिणामों तक उस पर संशय रहना लाजिमी है। आईपीएल को लेकर भी कुछ ऐसा ही था। कुछ अनिश्चय के शिकार इसके आयोजक भी रहे होंगे, इसलिए चीयर लीडर्स को नचाने से लेकर बॉलीवुड कलाकारों तक का तड़का लगाया गया। शुभंकर को रोचक तरीके से पेश किया गया। बांस पर चढ़े बीस फुट आदमी को खड़ा कर इस क्रिकेट को भी ऐसे खड़ा करने के सौ-सौ जतन थे। शुरुआत में लोगों ने इसे क्लासिक क्रिकेट के खात्मे के रूप में देखा। लेकिन इसकी लोकप्रियता के ज्वार में सारी आशंकाएं बह गई। अब कुल लब्बोलुआब यह है कि यह एक तीन घंटे की मशाला पिक्चर की तरह सामने आईहै, फिर भी पूरी तरह पारिवारिक। पूरे परिवार के एक साथ बैठकर देखने लायक। पूरी रुचि लेकर इसे देखा जा सकता है। पांच दिन के उबाऊ और एक दिन बर्बाद करने वाली क्रिकेट से परे इसका अलग ही सुख है। शाम को ऑफिस से लौटकर भी बच्चों के संग स्टेडियम जाया जा सकता है। भेलपुरी-पावभाजी उदरस्थ करें और स्टेडियम में घुस जाएं। तीन-साढ़े तीन घंटे में खेल खत्म, पैसे हजम। आ, अब लौट चलें।
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4 comments:
aap sahi kah rahe hain,,,, in dino aapka
बिल्कुल जी. मनोरंजन का साधन है.
bilkul thik kahaa aapne kabhi apni bhi aisi deewangi hua karti thi
aacha likha hai
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