July 04, 2008

बेहिसाब, बेसाख्ता, नौटंकी जारी है... देखते रहिए

इस समय देश में अजीब सी खामोशी है और सन्नाटे का हृदयभेदी शोर है। देश के आकाश में मानसूनी कम, किसी अनिष्ट की आशंका के बादल ज्यादा तैर रहे हैं। सियासत में बेतुके फैसलों की घड़ी है। कई पार्टियों के अंगने में मौसम सुहावना हो चुका है, वहां गुंजाइशों-संभावनाओं के फूल खिलने की भीनी-भीनी खुशी तैर रही है। तो किसी-किसी अंगने में कैकटस उग रहे हैं। रोज कोई कांटा सा उगता है, पर पता नहीं राजनेताओं की मोटी त्वचा उस चुभन को महसूस करती है कि नहीं। आम आदमी रोज उस चुभन के साथ जगता है, और दवा बन चुकी पुरानी पीर के साथ सोता है।
देखें तो इस समय सारे ज्वलंत मुद्दे रद्दी को टोकरी में डाले जा चुके हैं। एकमात्र बेकरारी परमाणु करार को लेकर है। जहां घोड़ी चढ़े दूल्हे की तरह तोरण मारने जैसी उत्कंठा के शिकार हैं पीएम और उनके पार्टी बाराती। वामदलों की समर्थन वापसी की दीर्घकालीन धारावाहिकी धमकियों का सम्भवतः तीन दिन बाद समापन हो जाए। क्योंकि कांग्रेसनीत यूपीए को अब नया सारथी मिलने की अघोषित खुशियां दस जनपथ से बाहर छलक मीडिया के आंगनों में गिरने लगी हैं। यूएनपीए की राष्ट्रीय बहस का मुद्दा भी शिगुफा भर ही निकलने वाला है। यह सिर्फ इसलिए, ताकि जनता को बहस के वहम में डाल चुपके से सरकार के पाले में समर्थन की बॉल डाली जा सके। अब तक एक कदम बढ़ाकर, दो कदम पीछे खींच लेने की आदी रही सरकार के मौजूदा आणविक दुस्साहस पर गौर करें, तो यह लगभग तय है कि उसका नया साथी कौन है? एकबारगी इस मुद्दे को परे कर के देखें कि करार देशहित में या विरोधी, तो जो आईना सामने आ रहा है उसमें भी किस गर्व के साथ चेहरा देखने की खुशफहमी पालें?
क्योंकि देश के आकाश में सब हवाई किले जैसे निर्माण किए जा रहे हैं। जहां जनता की नजर में ये सब रेत के किले भर हैं। कोई ठोस आकार-प्रकार नहीं। कोई ऐसी आकृति नहीं, जो यथार्थ के धरातल पर टिकी हो। कोई छद्म धर्मनिरपेक्षता के ईंटों से बनाया गया है, तो कहीं उसमें उग्र हिन्दुत्व का गारा मिला हुआ है। एक का मकसद भुलावे और भ्रम का माहौल बनाए रखना है, तो दूसरे का मरियल बाजुओं में जोश की लहरें पैदा कर वोट तक पहुंचाने की कोशिश भर है। लेकिन धोखे और दिखावे की नींव पर टिके ये किले अवाम को कोई राहत पहुंचाने वाले नहीं है। अवाम के सिर तिक्त धूप के टुकड़ों में झुलसते रहेंगे। यह तय है।
अब न महंगाई मुद्दा है, न उछाल मारता शेयर। शेयर का उछाल रूटीन की खबर भर रह गया है। सोने को इसलिए रोज याद करना पड़ता हैं कि देखें आज कितना चढ़ा। बाजार आपे से बाहर है, जनता अपनी औकात में रह...वाले मुहावरे के साथ अपनी हद में आ चुकी है। वह ऐसे चौराहे पर पहुंचा दिया गया है, जहां खुदकुशी के सिवाय कोई चारा नहीं। चारा होता, तो मौजूदा जारी तमाशे को मूकदर्शक की भांति देखती क्या? वह आंदोलन भी करती है तो इन्हीं पार्टियों द्वारा घोषित बंद की शक्ल में।

2 comments:

डॉ .अनुराग said...

सब चलता है वाला attitude है साहेब.....अब कोई चीज हैरान नही करती

Anil K Pareek said...

bahut khub ikha hai.mujhe to aaj blogvani dekhte waqt apke blog ka pata chala hai.maine bhi kal hi blog banya hai. aabkuch likhne ki kosish karunga.anilpareek