July 22, 2008

मंगल का हो गया मुंह काला

मंगल का मुंह काला आखिर कर ही डाला। यही तो मैंने चार दिन पहले लिखा था। आपने भी लिखा था। सबने यही लिखा था। सबको अंदेशा था। होता क्यों नहीं? जो हो रहा था, उसे तो होकर रहना ही था। अब आप क्या करेंगे? दो दिन से टीवी से चिपके हैं, आप, हम, समूचा देश। झुकी हुई गर्दनें, विस्फारित सी आंखें, शर्मिन्दगी से भरा हुआ माहौल। थूक देने को जी चाहता है इन मनहूस चेहरों पर। जिन्हें आप और हमने ही मालाएं पहनाईं थी। कितनी मक्कारी बयां हो रही है इन चेहरों पर। जुबां पर जो है, वह आंखों में नहीं। आंखों में जो है, वह चेहरों पर नहीं। जो होना चाहिए, वह कहीं नहीं। जो नहीं होना चाहिए, वह हर तरफ है। कोई अछूता नहीं। दूध से नहाया हुआ हर शख्स कलुषित है भीतर गहरे तक। खामोश है पूरा देश।
बस, संसद में शोरगुल है।
धिक्कार। मगर किसे? खुद को ही.......................।

3 comments:

Udan Tashtari said...

उनको तो कुछ असर होने से रहा..खुद को ही धिक्कार सकते हैं कि ये किसे चुन लिया.

vipinkizindagi said...

the great indian political show

दिवाकर प्रताप सिंह said...

देश और लोकतंत्र के हित के लिये 'रिश्वत-प्रकरण' की सच्चाई देश के सामने आना आवश्यक है। आरोप सच है या झूठ, दोनों ही सूरतों मे इस मामले का खुलासा होना ही चाहिए, ताकि लोकतंत्र और संसद के प्रति जनता का विश्वास बना रहे।