भारत जैसे कृषि प्रधान देश में मानसून मेहमान की तरह है। एक ऐसा मेहमान जिसके आगमन का सभी को बेसब्र इन्तजार रहता है। अक्सर इसकी देरी जनमानस को बेचैन कर देती है। इसको लेकर उनकी अत्कंठा छुपाए नहीं छुपती। और जब यह आता है, तो इसकी फुहारें प्राणी वृन्द को हुलसित-हर्षित कर देती है। आज रात से ही बारिश हो रही थी। सुबह घूमने के इरादे से उठा भी तो बारिश की टपाटप सुन वापस दुबकने का बहाना मिल गया। बूंदों की लोरी ने चैन की नींद सुला दिया। आंख खुली तो घड़ी की सुई नौ पर थी। गीले अखबार में कोई अपील नहीं थी कि उसे पढ़ा जाए। बस, पढ़ने की विवशता के चलते सरसरी दृष्टि डाल बरामदे में बैठ गया। बूंदो को निहारना काफी सुकून भरा लगा। आज ऑफिस भी भीगते हुए ही जाने का मन हुआ। मोटरसाइकिल धीरे-धीरे चलाते हुए, बारिश के खयालों में खोया ऑफिस पहुंचा।
कम, तेज होती बारिश की तरह ही मन में खयाल आ-जा रहे थे। आखिर बारिश में ऐसा क्या जादू है? बूंदों में जाने कैसी चुम्बकीय शक्ति है कि हर कोई अन्तर्मन से बंध जाता है। लेकिन सबके लिए बारिश के अपने-अपने मायने हैं, अपने-अपने अर्थ हैं। किसान जहां आसमान में आए श्वेत-श्याम बादलों का मैसेज पढ़कर खाद-बीज के इन्तजाम में जुटता है और खुशी पालता है कि चलो, इस बार तो सूखे से मुक्ति मिलेगी। आगे क्रमवार बारिश के साथ उसके खेत भी हरियाली के जरिए अपनी खुशी जाहिर करते हैं।
सरकारों के लिए किसान की इस खुशी का कोई खास अर्थ नहीं। सरकार और बादलों का संयोग यह है कि अच्छी बारिश उसके लिए किसान के प्रति दायित्वों से मुक्ति का पर्व है। समय पर खाद-बीज का उपलब्ध नहीं होना सरकारों की बेरुखी का ऐतिहासिक दस्तावेज है।
सरकारी दफ्तरों के लिए भी बारिश के अपने-अपने मजे हैं। वे इसका अपने हिसाब से मैसेज पढ़ते हैं और बूंदो को अर्थ देते हैं। अफसर और किसान की खुशी में पाताल फर्क है। किसान की देह जहां अगले छह माह मेहनत की खुशी में गंधाती है, वहीं अफसर की देह से हर एक बूंद को कैश में बदलने को ललक फूटती है। सड़कों में हुए गहरे घाव, उसके लिए और उसके मातहत कर्मचारियों के लिए मलहम का काम करते हैं। या वे कामना करते हैं कि इस बार सड़क पानी में बह जाए। एक जोरदार बारिश हो और सड़क डामर, पत्थरों समेत पूरी तरह धुल जाए। तो उनके भी कई पाप धुल जाएं। ठेकेदार आसमान में बादल देख, नए टेण्डर की खुशी में झूमता है। उसके मन में बेशर्म इरादे उगते हैं, और सरकारी कारिन्दों के ड्राइंग रूम में ये इरादे उनकी आंखों में नए अर्थ पैदा करते हैं।
बारिश में कागजों की नाव चलती हैं। कागजों में चलती हैं। कागजों में ही इन्तजाम होते हैं। बारिश का बाढ़ की शक्ल में आया एक रैला उन कागजों की पोल खोल देता है।
इस मौसम में सरकारी दफ्तरों का हरियाली प्रेम भी प्रस्फूटित होता है। उनके लगाए पौधे भले ही न फूटें, लेकिन उनके मन में हरियाली के पूरे बाग फूट पड़ते हैं। पौधे फाइलों में आंकड़ों की शक्ल अख्तियार कर लेते हैं और बारिश के वेग के साथ शून्य आकार में बढ़ते जाते हैं। बारिश गुजरने के साथ सड़कों के किनारे वही हालात, बाग, नर्सरियों में वही वीरानी, लेकिन सरकारी कारिन्दों के महकते लॉन पड़ौसियों को भी खबर कर देते हैं।
इस प्रकार बारिश के चार माह भारतीय जीवन को नए अर्थ दे जाते हैं। पढ़ने वाले इसे बखूबी पढ़ते हैं, और नए अर्थ गढ़ने वाले भी कमतर नहीं।
6 comments:
अफसर और किसान की खुशी में पाताल फर्क है। किसान की देह जहां अगले छह माह मेहनत की खुशी में गंधाती है, वहीं अफसर की देह से हर एक बूंद को कैश में बदलने को ललक फूटती है। ..........अच्छा लिखा...बहूत खूब।
bhut sundar lekh. likhate rhe.
बधाई, अच्छा लिखने के लिए
वर्षा के इस मायनों पर अच्छी लेखनी चलायी आपने ....
बािरश का दूसरा पहलू तब नजर अाता है जब लाखाें लाेग फुटपाथ पर नीली छतरी तले िकसी पेड के तले अपने अापकाे सारी दुिनया के साथ इनसान हाेने का अहसास िदलाते हुए खुली सड़क पर भांगड़ा करते हुए बहलाते हैं
aapne to bhigo diya sir
Post a Comment