February 09, 2008

मुरदा संवेदनाओं का सबब गुरदा काण्ड

जिन्दगी में गर कोई दुआ मांगने के लिए कहा जाए, तो मैं यही मांगूंगा कि काश एसा हो जाए कि कभी डॉक्टरों के पास न जाना पड़े। लेकिन यह खरा सच यह है कि न हम डॉक्टरों के पास जाने से बच पाते हैं और न एसी कोई दुआ मांगने के काबिल। जब-जब डॉक्टरों के पास जाना होता है, एक अजीब किस्म का डिप्रेशन दिमाग में हावी होने लगता है। लगता है, एक और नई बीमारी पैदा हो गई। यह अनायास उपजी बीमारी नहीं है। यह कुछ करतूतों से ही उपजी आशंका है। कुछ डॉक्टरों में भगवान के रूप में शैतान का घर होता है, जिसका उद्देश्य येन-केन-प्रकरेण पैसा कूटना होता है। यह मैं यूं ही हवा में नहीं कह रहा हूं। चौबीस कैरेट सच हमारे सामने है।
गुरदा डीलर पकड़ा गया और जितनी किडनी निकालना कबूला है, उसे सुनकर एकबारगी विश्वास उठ सकता है चिकित्सकीय पेशे से। लेकिन पूरी तरह एसा भी नहीं हो सकता। कुछ डॉक्टर आज भी अपने पेशे के प्रति निहायत ही ईमानदार हैं और एसे डॉक्टर मेरे परिचित भी हैं, जिनके बारे में मैं दावे से कह सकता हूं कि कम से कम वे न तो ऑपरेशन करते समय मरीज के पेट में औजार छोड़ेंगे और न ही मरीज को ऑपरेशन टेबल पर लिटा कर लूटने का उपक्रम करते होंगे।मेरे एक रिश्तेदार ने कल आपबीती सुनाई। यह महज एक घटना है और रोज न जाने किस कोने में, कहां-कहां एसी घटनाएं अंजाम को प्राप्त होती होंगी। दरअसल वे पिछली साल राजस्थान के चूरू जिले में थे, जब उन्हें सीने में कुछ ददॆ महसूस हुआ। वे झुझुनूं आने वाली बस में बैठ चुके थे।(दोनों की दूरू ५२ किलोमीटर है)। रास्ते में ददॆ असहनीय हो उठा। सांस धोंकनी सी चलने लगी। झुझुनूं पहुंचते-पहुंचते सांसे पूरी तरह उखड़ने लगी। उन्हें लगा, शायद डॉक्टर तक भी मुशि्कल पहुंच पाएं। वे बस स्टैण्ड के पास ही एक डॉक्टर जिसको वे दिखाते रहे हैं, के पास पहुंचे। भले डॉक्टर ने उनकी हालत देख तत्काल एक्सरे किया। एक्सरे देख वे दंग रह गए। बकौल रिश्तेदार, फेफड़ा फट गया। डॉक्टर ने उन्हें तुरन्त दूसरे डॉक्टर के पास भेज दिया, यह कहते हुए कि अभी ऑपरेशन करना होगा। उस डॉक्टर के पास गए तो उसने उनकी मरणासन्न हालत को नजरअंदाज करते हुए कुछ दवाएं लिख दी और फीस के पैसे वसूल लिए। वे तत्काल पहले वाले डॉक्टर के पास गए और सारी समस्या बताई। यह भी डॉक्टर ही था, जो मरीज की जान बचाने को चिंतित था। उसने गुस्से में साफ कहा कि वह डॉक्टर कुछ पैसे लेना चाहता था, उसके बाद ही ऑपरेशन करता। (हालांकि भुगतभोगी जानते हैं, सरकारी अस्पतालों में यह कोई नई बात नहीं रह गई है।) उन्होंने फिर एक डॉक्टर के पास भेजा और उसे फोन कर समस्या से अवगत कराया। रिश्तेदार मरीज की किस्मत अच्छी थी और उस डॉक्टर ने जाते ही ऑपरेशन कर दिया और उनकी जान बच गई।
वे रिश्तेदार सीने में थोड़ी प्रॉब्लम लेकर कल ही इस आस में मेरे पास आए थे कि मैं जयपुर में उन्हें किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाऊं।यह एक उदाहरण है। गौर करेंगे तो लाखों प्रकरण हैं इदॆ-गिदॆ। यहां अच्छे डॉक्टर भी हैं। और जितने अच्छे डॉक्टर हैं उनसे बुरे भी यहीं मौजूद हैं। उद्दाम लालसाओं ने उन्हें शैतान बना डाला है। तभी तो गुरदा काण्ड जैसे हादसे समाज, सभ्यता, कानून सबके चेहरे पर कालिख पोतते रहते हैं।