कल मूड नहीं था, सो यूं ही लिख दिया था कि आज मूड नहीं लिखने का, और फिर आपके लिखने से भी क्या हो जाएगा? मैं सोच भी नहीं सकता कि एक छोटी सी स्वीकारोकि्त पर साथी ब्लॉगर इतना अपनत्व ऊंडेल देंगे। कई रोचक टिप्पणियां आईं। जो मूड उखड़ा हुआ था, टिप्पणियों से उसकी मरम्मत हो गई। दिल हल्का हो गया। यह मित्रों की सदाशयता ही है कि एक उखड़ा मूड उनके सीधे दिल से निकले चंद शब्दों से दुरुस्त हो सका। अनिता कुमार ने लिखा कि लिखते भी हैं और कहते हैं मूड नहीं भई वाह। पढ़कर अच्छा लगा। हरिमोहन जी की टिप्पणी और भी मजेदार रही। क्या आप दुनिया बदलने के लिए लिख रहे हैं? लगा-खराशें उनके मन में भी हैं। साथ ही एक अपील भी थी कि दुनिया बदले या न बदले, लिखना अवश्य चाहिए। सहकर्मी अभिषेक ने भी हौसला अफजाई में कसर बाकी नहीं रख। सुनिता जी ने मेरी बात से सहमति जताई कि लिखने के लिए मूड का होना आवश्यक है। और सबसे जो खास टिप्पणी रही वह उड़ तस्तरी जी कि आज नहीं तो कल लिख लेना, दिल छोटा नहीं करो। वाकई दिल बड़ा हो गया। यूं भी हर रोज, हर पल हमें कुछ न कुछ लिखने के लिए प्रेरित भी करता है और बाध्य भी। ...और फिर जब इतने सारे दोस्त मददगार हों, आपके पीछे खड़े हों संबल बनकर तो क्यों न की बोर्ड पर अंगुलियां चलाईं जाए। इसलिए आज मन कर रहा है कि क्यों न लिखा जाए। बेशक लिखा जाए, क्योंकि लिखने के लिए विषय भी है और सबसे बड़ी बात यह कि मूड भी है।
दुषित पानी से मौतें और एक मंत्री कहता है कि यह सृषि्ट का नियम है जो आया है, सो जाएगा?
राजस्थान की राजधानी जयपुर में पिछले कुछ माह से दूषित पानी से मौतों के समाचार आ रहे हैं। आरोप है कि जलदाय विभाग की पाइप लाइनें और सीवरेज लाइनों के मिल जाने से पानी दूषित हो रहा है। इस पर कल जिम्मेदार मंत्री का बयान आया कि यह प्रकृति का उसूल है कि जो आया है, सो जाएगा। यह एक मंत्री का बयान मात्र नहीं है। इस बयान के आईने में एक सत्ता का चरित्र साफ देखा जा सकता है। मिनरल वाटर पीकर एसे गैर जिम्मेदार बयान देने वाले मंत्री शायद यह भूल रहे हैं कि वे जिस आने-जाने के ब्रह्म वाक्य की बात कर रहे हैं, कल चुनाव में उन्हें और उनकी सरकार को उसी जनता के सामने जाकर रिरियाना है। वे ही सब्जबाग उन्हें फिर दिखाने हैं। साफ पानी के वादे भी उन्हें करने हैं। तब वही जनता भी उन्हें परिवर्तन का पाठ सिखा सकती है।इस समूचे परिदृश्य पर गौर करें तो इस हमाम में सभी की नंगई दिखेगी। मंत्री, अधिकारी, ठेकेदारों तक सबकी मिलीभगत का परिणाम है यह हादसा। आरोपों के बचाव में एसे बयान देने की बजाय पाइप लाइनें चैक की जाएं। गलती का सूत्र ढूंढा जाए। और यदि कोई आरोपी है तो उसकी पहचान की जाए तो न उनकी किरकिरी होगी और न उन्हें एसे बयान देने की नौबत जाएगी।
1 comment:
भाई आप लिखने की बात कर रहे हैं !! मुझे तो टिप्पणियों के लिए भी मूड बनाना पढता है, वैसे समय का भी आभाव रहता है लेकिन पढ़ जरूर लेता हूँ.
खैर ये राजस्थान वाली ख़बर सोचने पर मजबूर करती है.
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