February 16, 2008

ब्लॉगिंग क्यों बन रही है अनिवार्य?

रोज-रोज ब्लॉगिंग करना सिरदर्द से कम नहीं है? आखिर ब्लॉगिंग क्यों इतनी अनिवार्य बन जाती है? एक तो यही कि जब आप लिखना शुरू कर देते हैं तो फिर आपको उपस्थिति दर्ज करानी ही पड़ती है। नहीं कराते हैं तो खालीपन का अहसास होता है। बेचैनी बढ़ती है और बढ़ते-बढ़ते उस बिन्दु तक पहुंच जाती है, जहां आकुलता का जन्म होता है। एसा आप नहीं चाहेंगे, लिहाजा कुछ भी लिखो, लिखना अनिवार्य मजबूरी है।मैं मेरे विषय में कह सकता हूं, जब से इस कीड़े द्वारा काटा गया हूं, कुछ न कुछ लिखने की अनिवार्यता के साथ उठता हूं। विषय सोचता हूं। कई जमते हैं। कई खारिज होते हैं। फिर विचारों की तारतम्यता बनाने की कोशिश करता हूं। इसी बीच कोई नया विषय दिमाग में कौंध जाता है। फिर उसमें सिर खपाने लगता हूं। फिर वही बेचैनी। यदि लिख भी लिया तो साथियों की टिप्पणियों का इन्तजार। टिप्पणियां नहीं आएं तो लगता है अपना लिखा हुआ सिरे से खारिज। यह भी कम परेशानी का विषय। अधिकांश ब्लॉगर्स साथियों की पोस्टें पढ़ते हैं। कुछ को देखकर ही छोड़ देते हैं। उनमें अधिकांश से ध्वनित होता है कि सभी सिर्फ मौजूदगी के लिए एक जंग लड़ रहे हैं। यह रोज की जंग है। जंग लड़ते रहो साथियो। शुभकामनाएं।

4 comments:

Ashish Maharishi said...

दोस्‍त लड़ने वालों की ही होती है

सागर नाहर said...

बस सर आप तो लिखते जायें.. फिलहाल यह ना सोचें की टिप्पणीयां नहीं मिली तो आपके लेख को खारिज कर दिया गया।
मेरी ऐसी कई पोस्ट है जिसके लिखने के लिये मैने अपनी रातॊं की नींद उड़ा दी और उन पर बोहनी तक बड़ी मुश्किल से हूई, और कई ऐसी हैं जिन्को मैने कुछ मिनिटों में लिखा और टिप्पणियों की बरसात हुई।

ghughutibasuti said...

सागर जी तो लिखने का सार जान गए हैं । लिखिये वही जो स्वयं अपने को लिखवा ले । जिसे लिखने के लिए रातों की नींद गंवानी पड़े वह लिखना बेकार है ।
घुघूती बासूती

Dr Parveen Chopra said...

क्या सुरजीत भाई आप जंग वंग की बात कर रहे हैं। मेरी मानिए तो बस मस्ती से लिखते जाइए ...दोस्त क्या फर्क पड़ता है , कोई पढे या न पढ़े.....अगर कभी लिखा कम भी पढ़ा जाए तो यह समझो कि यह लोगों का नुकसान है न कि आप का। आप तो बस अपना मन हल्का करते रहिए, यह काम भी अपने आप में बहुत बड़ा काम है, सुरजीत भाई। डाक्टर हूं ना, इसलिए भी यह कह रहा हूं...आज कल पता है दिल हल्का करना भी कितना ज़रूरी हो गया है। एट हैज़ ए मिरेकल इफैक्ट......बस बेपरवाह हो के अपने कल्पना के घोड़े सरपट दौड़ाते रहिए , खूब मस्त रहिए ....और मेरे जैसे कईंयों के आशीर्वाद आप के साथ हैं....ठीक है...अभी तो की-पैड पर दोड़ रही उंगलियों को विराम देता हूं. फिर किसी दिन किसी पोस्ट के ऊपर ही मेल होगा।